विश्वाश वो शक्ति है जो किसी बेजान चीज में भी जान फूंक सकती है ,एक रास्ते में पड़ा पत्थर भी जब दिल की श्रधा से और विश्वाश से पूजा जाता है तो वो भी भगवान् बन जाता है ,वो सामान्य सा दिखने वाला पत्थर पूजे जाने पर अचानक से चमत्कारी हो जाता है उस्ससे प्रार्थना करने से हमारी मन्नत पूरी होने लगती है क्या इसके पीछे हमारा अगाध विश्वाश नही है जो हमें एक शक्ति देता है हमें अपना काम बिना किसी चिंता के करने का , ये विश्वास ही है जो हमें किसी काम को शुरू करने से पहले होने वाले संकोच को और उसके परिणाम के बारे में हमारे मन में पैदा हुए खौफ को ख़तम करके हमें मानसिक बल देता है ,हमारी ताकत को दोगुना कर देता है ,,,,,,,,,
अगर देखा जाये तो ये सम्पूर्ण शक्ति कही न कही हमसे ही आई है अगर हम अपनी इस ताकत को समझ ले और ये जान ले की हमारा आत्मविश्वास ही हमें शक्तिशाली बनाता है तो हम बेमिसाल बन सकते है और और यही विश्वाश जब हम किसी और इन्सान में दिखाते है तो वो भगवान् बन जाता है पर हम इन्सान है और हमारी जिम्मेदारी ये भी है की हम ये देखे की हम जहा अपना विश्वाश दिखा रहे है क्या वो हमारे विश्वाश के लायक है या नही वैसे तो विश्वाश में भ्रम का कोई सवाल ही नही उठता है परन्तु अगर हम आँखों के सामने से हर सच देखने के बाद भी किसी गलत बात को या इन्सान को सही साबित करने में लग जाये और उसमे अपना विश्वाश ,अन्धविश्वाश की पराकाष्ठा तक ले जाये तो फिर हममे और और एक नादाँ बच्चे में क्या फर्क है इसलिए अपने विश्वाश की इज्ज़त करे और उसे अन्धविश्वाश का आकार ना लेने दे वरना ये आपके साथ साथ पूरे समाज को भ्रमित कर देगा
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