भारत की जनता इस समय त्रस्त है ,मंहगाई से भ्रस्टाचार से बेरोजगारी से और असुरक्षा से जहां देश की बागडोर ऐसे लोगो के हाथो में है जो अपने ही अहंकार में डूबे हुए है जिन्हे कोई परवाह नही की देश के लोग और देश का आत्मसम्मान विनाश की गर्त में जा रहा है उन्हें फ़िक्र तो बस अपनी सत्ता को सहेजने की। देश की राजधानी दिल्ली ,जिसने विगत कुछ वर्षो में बहुत कुछ भुगता ,जो ज्यादातर पूरा देश भुगत रहा है पर शायद दिल्ली की झोली में ये कुछ ज्यादा ही आ गया। बिजली की समस्या ,पानी की कमी और महिलाओ के लिए असुरक्षा और भी न जाने क्या क्या। लोगो ने एक महिला पर भरोसा किया और उसे दिल्ली कि किस्मत सौपी पर शायद दिल्ली का ख्याल गलत निकला क्युकी बागडोर सँभालने वाले अपने ही अहम में जी रहे थे कि वो जनता के सेवक नही भाग्य विधाता है। दिल्ली में दिसम्बर २०१२ में होने वाले निर्भया कांड ने तो लोगो को दहला कर रख दिया ,अब तो दिल्ली में बेटियो का घर से निकलना भी खतरे से खाली नही और ऐसे में मुख्यमंत्री साहिबा का ये कहना कि लड़कियो को रात में घर से ही नही निकलना चाहिए ,बहुत ही गैरजिम्मेदाराना और शर्मनाक बयान था। पूरी दिल्ली ने एक होकर सड़को पर सरकार का घेराव किया और निर्भया के लिए इन्साफ मांगा पहले तो सरकार ने इसे हलके में लिया और मासूम जनता पर लाठिया बरसायी लेकिन लोगो के गुस्से कि आग नही बुझी तब सरकार ने अपने किये के लिए माफ़ी मांगी और महिलाओ कि सुरक्षा के लिए नया बिल लाने का वादा भी किया ,जनता के भय ने सत्ता को झुका दिया लेकिन क्या सच में दिल्ली सुरक्षित हो गयी नही क्युकी ये सत्ता के खोखले वादे थे अपराध अब भी हो रहे है लोग अब भी अपनी रोजमर्रा कि जिंदगी जीने के लिए संघर्ष कर रहे है ,लोगो में गुस्सा है पर किसके लिए शीला दीक्षित के लिए नही बल्कि उस केंद्र सरकार के लिए उस कांग्रेस के लिए जो इतने घोटाले करने के बाद ,आम जनता के जीवन को कष्टकारी बनाने के बाद भी उसे सुधरना तो दूर उस पर पछतावा करना भी जरुरी नही समझती वो जनता को जवाब नही देना चाहती ,अहंकार ने अच्छे अच्छो को नीचे पटक दिया तो फिर कांग्रेस क्या है। ऐसे में एक चर्चित जनांदोलन जिसके नेता अन्ना हजारे जी रहे ,उनके सहयोगी अरविन्द ने अन्ना के आदर्शो के खिलाफ जाकर एक राजनीतिक पार्टी आम आदमी पार्टी का गठन किया। घर घर जाकर लोगो को ये सन्देश दिया कि सभी पार्टियां एक जैसी है पर हम आम लोगो की पार्टी है जिसमे सिर्फ जनता का मत तथा जनता का हित मायने रखता है। अरविन्द ने मायूसी के भंवर में फंसे लोगो को एक ऐसा विकल्प दिखाने कि कोशिश कि जो निष्पक्ष और पारदर्शी बनने का दावा करता था ,हालांकि लोगो ने कांग्रेस के खिलाफ अपने गुस्से का एक विकल्प बीजेपी में ढूंढा परन्तु अरविन्द उनके सामने एक और विकल्प बनकर आये। दिल्ली २०१३ के विधानसभाचुनावो में कांग्रेस कि जबरजस्त पराजय हुई बीजेपी बड़ी पार्टी बनकरउभरी। आप पार्टी दूसरे नंबर पर आयी पर बहुमत किसी को नही मिला। बीजेपी ने सरकार बनाने से इंकार कर दिया क्युकी वो गठजोड़ नही करना चाहती थी और आप पार्टी के नेता अरविन्द कहते रहे कि वो जनता के हितैषी है इसलिए वो बीजेपी से समर्थन लेगे और न ही कांग्रेस से। आखिरकार उन्होंने जनता के वोट इसी आधार पर ही तो हासिल किये थे कि वो एक अन्य विकल्प है और पार्टियो कि तरह नही है। सरकार न बनने कि हालत में अरविन्द ने कहा कि वो लोगो से राय लेकर सरकार बनाने को तैयार है जिसमे पहले तो वो समर्थन लेने के लिए भी शर्ते रख रहे थे लेकिन ऐसा हुआ नही ,आखिरकार अरविन्द ने जनता कि राय ली जिसमे दिल्ली कि कुल जनता में से सिर्फ २. ५५ %लोगो ने हां की और अरविन्द तैयार है सरकार बनाने के लिए। उस कांग्रेस का हाथ थामकर जिसे वो सांप कहा करते थे। तो क्या सच में ये आम जनता की जीत है बाकि लोगो कि राय मायने नही रखती अरविन्द की नजर में। क्या ये लोगो के साथ धोखा नही है क्युकी जिस कांग्रेस के खिलाफ आम जनता ने अपना रोष निकाला है विधान सभा चुनावो में उसी कांग्रेस का साथ देकर अरविन्द केजरीवाल ने क्या किया? इसका फैसला तो जनता को करना है कि क्या आम आदमी पार्टी का निर्माण जनता के लिए हुआ था या जनता के वोट हासिल करके बीजेपी की राह में रोड़े अटकाना और कांग्रेस कि झोली में वो अधिकार डाल देना जिसे जनता ने नकार दिया था। क्या अरविन्द की झाड़ू सत्ता कि गन्दगी साफ़ करने कि बजाय जनता की भावनाओ का सफाया तो नही कर देगी।
andolan banam rajneeti
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